लेकिन तेरे कदमों से ही तो बढ़ता मैं आज हूँ।
तेरी ही चाह में खुद का बदलता मैं मिज़ाज हूँ।
बदल दिया जो संस्कार,उसी का मैं आगाज हूँ।
नए दौर के लफ्ज़ों से निकला मैं अल्फ़ाज़ हूँ।
ध्यान से तो सुन तेरे ही दिल की मैं आवाज हूँ।
आसमां से भी ऊंची जो उड़े वही मैं परवाज हूँ।
तेरे मन को जो भाये, वही झंकृत मैं साज हूँ।
तुमने जो शब्द भरे,उन्हें ही देता मैं आवाज हूँ।
तुम्हारे ही दिल में तो दफ़न हुआ वो मैं राज हूँ।
बदल गया "प्रियम" तो कहते कि मैं नाराज़ हूँ।