Sunday, March 11, 2018

पलाश

पलाश

***************

पलाश
जीवन मे भर लो रंग यूँ खाश
जैसे खिले हैं चमकते पलाश।
वासन्ती हवाओं में बहकते
दारुण से दहकते ये पलाश।

अपना भी रंग चढे कुछ ऐसा
इन फूलों से बनता रंग जैसा
खिंच लो जहां को अपने पास
जैसे दमकते फूल हो पलाश।

अर्थहीन जीवन न हो ऐसा
गन्धहीन फूल पलाश जैसा
सुंगंध भी जो होता काश !
देवों को भी चढ़ता पलाश।


सीरत भी हो सूरत के सिवा
खुशबू भी हो रंगत के सिवा
न हो जाय जिंदगी ऐसी काश
फूल हो जैसे की यह पलाश।

हाँ! जिंदगी में यूँ जगाओ आस
जैसे कि आग से दहकते पलाश
सुगन्ध नही तो फिर क्या हुआ
औषधीय गुणों को रखा है पास ।

अपूर्णता में भी, सम्पूर्णता का
 देता है ये तो, हरपल एहसास
कोई कमी रह जाये जीवन में
बन जाएं खुद, जग का विश्वास।

नही गन्ध है,जो नही सुगन्ध है
फिर भी फूल है, ये बहुत खास
रंगों से,वसन्त का देता एहसास
प्रकृति का नवसृजन है पलाश।
©पंकज प्रियम






No comments: