Saturday, March 31, 2018

ग़ज़ल/ लफ्ज़ो की बाज़ीगरी

ग़ज़ल/ लफ्ज़ो की बाज़ीगरी

दिल में दस्तक देकर,जाने तुम किधर गए
मेरी आँखें ठहरी वहीं,जाने तुम जिधर गए।

तुझसे मिलने की ,ख्वाहिश में निकले मगर
मेरे कदम तेरे दर पर,पहुँच कर भी ठहर गए।

पहले था मुझे तेरे,इरादों का एहसास मगर
तेरे नाम,काम,हर दिन सुबहो शाम कर गए

मेरी हर सांस का तुझको है एहसास मगर
दिल तोड़ दिया, क्या आंखों से भी उतर गए?

दिल की लगाई हमने यूँ बहुत बाजी मगर
तेरी मुहब्बत के खेल में हम यूँ हीं बिखर गए

अपने जज्बातों को समेटा प्रियम बहुत मगर
की लफ़्ज़ों की बाज़ीगरी तो यूँ ही निखर गए।
----/©पंकज प्रियम
31.3.2018

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