Sunday, March 11, 2018

तोड़ती पत्थर माँ





ये तोड़ती पत्थर!
😢😢😢😢😢😢
रोयी धरती, रोया है अम्बर
देखकर ये तोड़ती पत्थर।
है क्या सूरज की ज्वाला ?
भूख बनी है जीवन हाला।
जेठ धूप सी तपती जमीं
फ़टी छांव की छत सरपर।
देखकर ये तोड़ती पत्थर।

इस मां की भूख देखूं या
फिर देखूं इस अबोध से
चिपके बच्चे को तनपर।
टुकड़ों में बिखरे जीवन
हथोड़े से टूटते यूँ पत्थर।
बियावान सी विवशता
बरसती झुकी आंखों से।
वात्सल्य का गहना तनपर
रोयी धरती रोया है अम्बर
देखकर ये तोड़ती पत्थर।

दहकती आग सी जलकर
तपती बुझती राख बनकर
खुद ही जीवन के पथपर
रोज ही टुकड़ो में बंटती
बनके वो खुद एक पत्थर।
पेट के दवानल जलती
रोज चलती अग्निपथ पर
बुझी आग बन गयी राख
देखकर ये तोड़ती पत्थर।
©पंकज प्रियम
11.3.2018

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