Wednesday, February 7, 2018

छन रहा सियासी पकौड़ा है

छन रहा पकौड़ा है।
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चूल्हे में आंच लगाओ थोड़ा थोड़ा
सियासी तेल में छन रहा पकौड़ा है
पहले तो खूब खिचड़ी पकती थी
सियासती आग में रोटी बनती थी
सत्ता कुर्सी सियासत में सब दौड़ा
बेरोजगारी में छन रहा पकौड़ा है।
देश मे मुद्दे अनन्त है
प्रश्न बड़े ज्वलन्त हैं
भूखेपेट सोता किसान
सरहद में मरता जवान
आतंक का रोज चल रहा हथौड़ा है
सियासी चूल्हे में छन रहा पकौड़ा है।
पूछो उस शख्स से
उसके घर मे कैसे
दो रोटी का होता रोज झगड़ा है
आप मजे में छान रहे पकौड़ा हैं!
शर्म नही ये तो एक धंधा है
सियासी रंग सा नही गन्दा है
नौकरी नही ये स्वरोजगार है
लाखों घर का ये रोजगार है।
चाय चर्चा पे तो चला रेस का घोड़ा है
सियासी आंच पे छन रहा पकौड़ा है।
स्वस्थ राजनीति पर चर्चे कराओ
देश प्रदेश गांव विकास कराओ
भूख बेरोजगारी पे ध्यान लगाओ
संग मिलकर सब कदम बढ़ाओ।
तुच्छ राजनीति से शासन भगौड़ा है
सियासी कड़ाही में छन रहा पकौड़ा है।
©   पंकज भूषण पाठक "प्रियम"

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