Wednesday, February 28, 2018

कैसे मनाऊं होली?


  कैसे मनाऊं होली?

कैसे मनाऊं कान्हा मैं होली
सरहद पे रोज चलती गोली।
रईसजादों के चारपहिया तले
कुचल जाती है मासूम बोली
कैसे मनाऊं कान्हा मैं होली।

हवस भरी हाथो से अबला की
हर रोज फट रही चुनरी चोली
घर मे भी सजी सँवरी बेटी की
दहेज महफ़िल में लगती बोली
कैसे खेलूं कहो कान्हा मैं होली।

स्वानों को मिलता दूध बिस्किट
भूखे पेट अकुलाते अबोध बच्चे
हजारों में भी नही भरती झोली
कैसे करूँ हंसी और ठिठोली
कैसे मनाऊं कान्हा मैं होली।
©पंकज प्रियम
28.2.2018









Tuesday, February 27, 2018

जिंदगी है सूप-2

जिंदगी है सूप-2

जिंदगी भी ऐसी है मानो है वो सूप
खट्टी- मीठी तो कभी मिर्ची से रूप

मैंने भी चख लिया दो चम्मच सूप
नमक से घुल गया स्वाद अनुरूप।

कभी हॉट कॉर्न कभी टॉमेटो सूप
देखा है हमने जिंदगी के कई रूप।

कभी चीनी कभी नमक बढ़ा बहुत
तीखी मिर्ची में भी रह गया मै चुप

पियो तो और बढ़ा देती है ये भूख
कभी छाँव भली तो कभी ये धूप।
©पंकज प्रियम
27.2.2018

मुख़्तसर जिंदगी

जिन्दगी को हमने यूँ मुख़्तसर कर लिया
चन्द सिक्कों में ही जीवन बसर कर लिया।

औरों की हंसी में ही छुपी है खुशी अपनी
गैरों के दर्द से आंखों में आंसू भर लिया।

फूल ही नही, कांटों से भी निबाह है अपनी
कभी महल  कभी राहों में गुजर कर लिया।

हरपल हरक्षण को जी है मैने जिंदगी अपनी
कभी ख्वाबों में कभी जमीं पे घर कर लिया।

आंखों में ही अक्सर गुजरी है रात अपनी
जिंदगी की जंग लड़ते ही सहर कर लिया।

छोटी उम्र में ही पढ़ ली पूरी जिंदगी अपनी
लम्हों को चुनकर ही अपना शहर कर लिया ।

सूरज सा तपता दीप से रोज जलता जीवन
जीवन तपिश ने जिंदगी मे असर कर लिया।

जिंदगी को हमने यूँ मुख़्तसर कर लिया
लबों की हंसी में जीवन बसर कर लिया।
©पंकज प्रियम
27.02.2018

Monday, February 26, 2018

सुप सी जिंदगी

जिंदगी

जिंदगी भी सूप सी होती है
पीयो तो भूख बढ़ा देती है।

कुछ पा कर और अधिक
पाने की भूख बढ़ा देती है।

कामयाबी हासिल ज्यादा
तो बहुत सर चढ़ा देती है।

जिंदगी के जंग में जिंदगी
पहले ही खुद खड़ा होती है।

जिंदगी भी सूप सी होती है
कुछ खट्टी-मीठी सी होती है।

पहले ही परोसी जाती और
पहले ही खत्म सी होती है।

#पंकज प्रियम

Sunday, February 25, 2018

प्रश्न पूछ डालते हैं

प्रश्न पूछ डालते हैं
******(((?????
सोचता हूँ कभी भगवान ने
पेड़ पौधे जंतु इन्सान बनाया
सबमें रूप रंग दे जान बसाया
फिर इनमें ऐसा क्यूँ भेद जगाया
जाति धर्म सम्प्रदाय दंगे भेद
क्या ईश्वर ने ही बनाया?

सोचता हूँ फिर
सब तो उसकी ही संतान है
सब मे बसता उसकी जान है
फिर किसने ये रंग लगाया
किसने ये जाति भेद जगाया

हम चाहते है जिसे पूजते हैं
अपना दर्द ,प्राण मानते हैं
पर जाति धर्म की बेड़ियों
खुद बंधा लाचार  पाते है
अपना नही बना पाते हैं

कोई राम कोई रहीम मानते हैं
उसकी ही संतान को मारते हैं
कितना भला होता जहां में
एक समाज एक धर्म
एक भगवान होता

न मन्दिर न मस्जिद
न चर्च न हो गुरुद्वारा
सबकुछ सबके दिल मे
फिर क्यूँ ढूंढा जग सारा
सब जानते फिर भी नही मानते हैं
हरबार एक नया प्रश्न पूछ डालते हैं
©पंकज प्रियम




ये तेरा इश्क कैसा है-3


उसने पूछा मुझसे ,क्यूँ इंतजार करते थे
मैने बोला उससे, बहुत ही प्यार करते थे।
ये तेरा प्रश्न कैसा है, मेरा जवाब कैसा है
खड़े तकके दर पे हम यूँ इंतजार करते थे।

उसने पूछा हमसे क्या तुम काम करते थे
मोहब्बत नाम है जिसका वो काम करते थे
वो तेरा इश्क कैसा था ये मेरा इश्क़ कैसा है
अपना हर घड़ी हरपल तेरे नाम करते थे।

कभी गर ना आयी तो हम बेकरार रहते थे
तेरे घर की राहों में खड़ा इंतजार करते थे।
वो दिनरात कैसा था अब ये बात कैसा है
तेरे इनकार को भी हम यूँ स्वीकार करते थे।

तभी पूछा नही हमसे क्यूँ इंजतार करते थे
कभी बुझा नही दिलसे कितना प्यार करते थे।
वो तेरा रुआब कैसा था ये मेरा रुआब कैसा है
कभी आंखों में पढ़ते तो क्यों इन्तजार करते थे।

तेरे ही नाम जीते थे तेरे ही नाम मरते थे
तेरे ही नाम से तो हम सुबहोशाम करते थे
वो तेरा नाम कैसा था ये मेरा नाम कैसा है
तेरे हंसी की चाहत का यूँ इंतजाम करते थे।

यकीन ना हो तो पूछो अपने दिल से तुम
मेरी याद में ही तुम क्यों गुमसुम रहते थे
ये तेरा वज्म कैसा है ये मेरा नज़्म कैसा
जरा दिल से पूछो तो कितना प्यार करते थे।

उसने पूछा हमसे, क्यूँ इन्तजार करते थे
मैन बोला उससे बहुत ही प्यार करते थे।

©पंकज प्रियम
25.2.18





Saturday, February 24, 2018

भींगे रे चुनरिया

भींगे रे चुनरिया
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चले लागल हावा कइसन उड़े रे चुनरिया
होलिया  के गीत अइसन लागे रे गुजरिया।

अम्बवा मंजेर गेलेय फुयल गेलेय पलसवा।
होलिया के रंग से रंग भैयर गेलेय कलशवा।

बड़ी सुंदर हवा चले आय गेलेय फगुनवा ।
रंग बिरंग फूल खिलल झूमय मोरा मनवा।

बड़ी सुंदर गोर गोर फूलल हो सहजनवा
डारे डारे फैर गेलेय बड़ी बेस कटहरवा।

गली गली बाजे लागल ढोलवा मंजीरवा
धुर संगे उड़े लागल रंग बिरंग अबीरवा।

गोरे गोरे गोर गौरिया फूलल तोर गलवा
आ लगाय दियो हरियर पीयर गुललवा।

राधा के रंग मारे कान्हा पिचकारिया
भींगे तोर चोली गोरी भींगे तोर चुनरिया।

छोडबो नाय तोरा चाहे तोय दे गरिया।
होलिया के गीत एसन गाही ए गुजरिया।

भींगे तोर चोली गोरिया भींगे रे चुनरिया।
तोय हमर गोर गोरिया हम तोर साँवरिया

भौजी संग नाचे देखीं बुढ़वा देवरवा
साली संगे डूबे जीजा भरल रंग टबवा।

होलिया के एसन गीत गाहीं रे गुजरिया
भींग जाय चोली गोरी भींगे रे चुनरिया।
©पंकज प्रियम
24.2.2018

Friday, February 23, 2018

ये तेरा इश्क़ कैसा है-2

       
                        ये तेरा इश्क़ कैसा है-2

मुहब्बत की नुमाइश को चाहत तुम समझते हो
जरा आंखों में देखो तो,मेरी पलकों में रहते हो।
   ये तेरा इश्क़ कैसा है ये मेरा इश्क़ कैसा है।
मेरी नींदें चुराकर तुम खुद ख्वाबों में बसते हो।

जरा सीने से लग जाओ मेरे दिल मे धड़कते हो।
जुबां खामोश रखते हो मगर दिल से तड़पते हो।
  ये तेरा इकरार कैसा है ये मेरा इज़हार कैसा है
जलाकर तुम परवाना कभी शमां से फड़कते हो।

एक हसरत सी दिल मे थी जिसे मैंने संभाला है
मेरे सपनो के आंगन में तुझे नाजों से पाला है।
  ये तेरा शबाब कैसा है ये मेरा गुलाब जैसा है
तूने पाने की चाहत में ,पीया जीवन का हाला है।

तुझे देखे अगर कोई, तो मेरा ये दिल जलता है
मुझे छू ले अगर कोई तो तेरा दिल भी जलता है।
   ये तेरा रश्क कैसा है ये मेरा रश्क कैसा है
न पूछो तुम भला कैसे ये मेरा दिल सम्भलता है।

 नजरों से इनायत है ,जुबाँ खामोश रखते हो 
 लबों पे नाम लेकर भी मगर इनकार करते हो
     तेरा इश्क़ कैसा है ये मेरा इश्क़ कैसा है 
कभी इनकार करके भी फिर स्वीकार करते हो
©पंकज प्रियम
23.2.2018.12:28am



Thursday, February 22, 2018

वतन की जान है भाषा



 वतन की जान है भाषा
*******************
निज सम्मान भाषा है
निज अभिमान है भाषा।
जुबां कितनी भी हो जाए
लबों की शान है भाषा।

जुबां उर्दू हो या हो हिंदी
वतन के माथे की है बिंदी
चाहत हो अगर दिल की
 बड़ी आसान है भाषा।

जहां चाहे चले जाओ
भाषा अपनी ले जाओ
मोहब्बत है वतन से तो
वतन की जान है भाषा।

न बोली पे कोई रगड़ा
न भाषा पे कोई झगड़ा
जो शब्दों में संवर जाए
वही तो प्यार है भाषा।

    ©पंकज प्रियम

ये तेरा इश्क़ कैसा है

ये तेरा इश्क़ कैसा है
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किसी के नाम पे हमने,लफ्ज़ो को सँवारा है।
लबों पे नाम आ जाए,नही उसको गवारा है।
 ये तेरा इश्क़ कैसा है,ये मेरा इश्क़ कैसा है

कभी खुलके हंसता है,कभी चुपके से रोता है
कभी रातों में जगता है,कभी राहों में सोता है।
  ये तेरी नींद कैसी है,ये मेरा ख़्वाब कैसा है।


कभी दरिया को ठुकराता,कभी शबनम पीता है
कभी सांसो में मर जाता,कभी ख्वाबों में जीता है।
   ये तेरी प्यास कैसी है, ये मेरा प्यास कैसा है।

वो रोज ही सपने दिखाती, उसे फिर तोड़ जाती है
वो दो कदम साथ चलाती,फिर राह छोड़ जाती है।
     ये तेरा साथ कैसा है,ये मेरा साथ कैसा है।

किसी के चाह में हमने ,रात आंखों गुजारा है
किसी के राह में हमने,बर्षों जीवन यूँ गुजारा है
    ये तेरी राह कैसी है ,ये मेरा मार्ग कैसा है।

कभी मूरत से सूरत हो ,तुम मेरी जरूरत हो
सपनों से निकल जाओ,तुम मेरी हकीकत हो।
 ये तेरा ख़्वाब कैसा है ये मेरा ख़्वाब कैसा है।

 गुलाबो में बिखरता है कभी कांटो में पलता है
हवाएं खूब चलती है दीपक फिर भी जलता है
   ये तेरी आग कैसी है ये मेरा राग कैसा है

किसी के  इश्क़ में हमने, शब्दों को सजाया है
अमर हो जाये क़िस्से जो,वो इतिहास बनाया है
    ये तेरा नाम कैसा है ये मेरा नाम कैसा है।

लबों पे नाम आ जाए नही उसको गवारा है
कोई कह दे पागल है कोई कह दे आवारा है।
  ये तेरा इश्क़ कैसा है ,ये मेरा इश्क़ कैसा है
©पंकज प्रियम
 22.2.2018

Wednesday, February 21, 2018

निराला है

कविवर निराला के जन्मदिवस पर शतशत नमन

निराला है
**(**(****
हिंदी सुधा सरिता जीवन
पीया जिसने खुद हाला है।
हिंदी सेवा साहित्य सृजन
सुधा, समन्वय, मतवाला है।
नैराश्य से एकाकी जीवन
बचपन जवानी दर्द पाला है
सरोज स्मृति समर्पण
आलोचना विष प्याला है
छायावादी छंदमुक्त क्षवि
जीवन गुढ़ रहस्य वाला है।
मुक्तछंद स्वतंत्र परिमल
महाकवि कविवर निराला है।
©पंकज प्रियम
21.2.18

ख़लल

     ख़लल
****************

आसमां को छू लेने की
दिल ने यूँ हसरत पाला है।

ख्वाबों में घर बसाने की
जिद ने हवामहल ढाला है।

क्या करूँ मेरे सपनों ने ही
मेरी नींदों में ख़लल डाला है।

लोग कहते है क्यूँ सोते नही
तुमने यूँ हमको बदल डाला है।

तेरे ख्वाबों के समंदर में ही
रेत का सुंदर महल ढाला है।

तुझे पाने की चाहत में ही
हमने खुद को बदल डाला है।

तुझे आँखों से पी लेने की
ज़िद में चिलमन बदल डाला है।

मेरे सपने मेरे ख्वाबों ने ही
मेरी नींदों में ख़लल डाला है।

©पंकज प्रियम
21.2.2018



Tuesday, February 20, 2018

दिल्ली का बवाल

दिल्ली का बवाल
**************

आपने क्या कर दिया कमाल है
दिल्ली में तो मच गया बवाल है.

सीएम के घर सीएस ठोकाल है
नेता अफसर में हुआ धमाल है।

भाईचारा के शपथ पर सवाल है
दिल्ली में आया कैसा भूचाल है।

ऐसी कौन सी आफत आयी थी
आधी रात को बैठक बुलाई थी।

बूढ़े अफसर को किया हलाल है
कुरुक्षेत्र में मचा बड़ा बवाल है।

©पंकज प्रियम
20.2.2018

#सीएम के घर सीएस की पिटायी

Monday, February 19, 2018

कर्ज़ की दास्तां


दास्तान कर्ज़ की ये सुनाते है
सबको एक राह मोड़ जाते हैं
लेकर अमीर देश छोड़ जाते हैं
बेचारे गरीब देह छोड़ जाते हैं।

किश्त तो आम के किरदार है
कर्ज़ तो खास के  हकदार हैं
किसानों को कर्ज़ माफ़ी नही
रईस तो बैंक के ही सरदार हैं।

बैंकों को लगाके चूना देखो
सारे रईस देश छोड़ जाते हैं
फिर उनके कुकर्मों का बेल
गरीबों के सर फोड़ जाते हैं।

बैंक भी तो बड़े निराले हैं
कैसे जनधन रखवाले हैं
कर्ज़ की थाली सजाकर
रईसों के बीच होड़ लगाते है।

खेतों में बीज बोने अन्नदाता
बैंकों की रोज दौड़ लगाते हैं
चक्रवृद्धि का बढ़ता  ब्याज
गरीबों की कमर तोड़ जाते हैं।

मोदी माल्या बैंकों को ठेंगा
दिखाकर देश छोड़ जाते हैं
और बेचारे किसान गरीब
कर्ज़ में डूब देह छोड़ जाते हैं।
©पंकज प्रियम
19.02.2018

Sunday, February 18, 2018

कर्ज में पेड़ चढ़ गया रामराज


आया तो नही रामराज्य
पेड़ में चढ़ गया रामराज।
करोड़ों का लगाके चुना
भागा नीरव बोरी साज।

और किसान ये कैसा है
सूखे फ़टे खेत जैसा है
डेढ़ लाख के कर्जे में ही
मरने चढ़ गया रामराज।

यहां तो हररोज मरता 
चक्रवृद्धि में किसान है
साधारण ब्याज से भी 
सस्ती उनकी जान है।

काश! हर किसान भी
ये चालाकी कर जाता
फिर कोई आत्महत्या
को पेड़ नही चढ़ जाता।

मोदी माल्या सी थोड़ी
वो भी हिम्मत कर जाता
बैंकों को लगाके चूना
वो भी परदेश भाग जाता।

मिनिमम बैलेंस के नाम
कैसे बैंक रोज हड़काता
घोटालेबाजों के तो आगे
 तिजोरी ही खोल जाता।
          ©पंकज प्रियम


Saturday, February 17, 2018

निशानी है बहुत

356.निशानी है बहुत
हार की खातिर तेरी ये बेईमानी है बहुत
तेरी हरचाल ही जानी पहचानी है बहुत।
तेरे ख्यालों से पहले सब जान जाता हूँ
तुम्हारे दिल में ही छुपी कहानी है बहुत।
तुम्हारे हर कदम को पहचान जाता हूँ
बनके अनजान करती नादानी है बहुत।
क्या छुपाओगे तुम, हमसे हाल अपना
तेरी जिंदगी में बिखरी परेशानी है बहुत।
कभी फुर्सत मिले तो ज़ानिब आ जाना
तुझे अपनी भी कहानी,सुनानी है बहुत।
तेरे ही दर्द से जख़्म हुआ है यहाँ गहरा
मेरे दिल में जख़्म की निशानी है बहुत।
बहुत गुरुर न तुम,अपने हुश्न पे यूँ करना
इन आँखों ने यहाँ देखी,जवानी है बहुत।
इश्क़ समंदर भी पार उतर आया प्रियम
मेरी कहानी की दुनियां दीवानी है बहुत।
©पंकज प्रियम
31.5.2018

Friday, February 16, 2018

बैंकों को खा जाते हैं।

बैंकों को खा जाते हैं।
*******************

यहां सिक्कों पे आफत है
वो अरबों डकार जाते हैं।
यहाँ तो लोन मिलता नही
वो बैंकों को ही खा जाते हैं।

जो कर्ज में डूबा किसान है
ज़िल्लत में जीता जान है।
उन्हें बैंक हर रोज डराते है
माल्या मोदी भाग जाते हैं।

अंगूठे पे ही तो चल रहा
सत्ता और शासन यहाँ
ठेंगे से मिलता राशन यहाँ
हर कोई देता भाषण यहाँ।

बैंकों की इनायत तो देखो
हमे किस कदर सताते हैं
उन्ही से मुहब्बत निभाते हैं
जो उन्हें ठेंगा दिखा जाते हैं।

चन्द सिक्कों के बोझ में
किसान फंदा झूल जाते है
और बैंकों को चुना लगा
मोदी माल्या पान खाते हैं।

यहां सिक्कों पे आफत है
वो अरबों डकार जाते हैं
हमारे मेहनत के पैसों से
वो अपना उधार पचाते हैं।
©पंकज प्रियम







Wednesday, February 14, 2018

Happy Valentine's Day...प्रणय दिवस

Happy Valentine's Day

 मधुमय
प्रणय दिवस में
है प्रियम का ये अभिनन्दन प्रिये
पूर्णचन्द्र की क्षीण कला सी
अम्बर को छूती चपला सी
लहराई यूँ कनक लता सी
धरा अम्बर का है ये मिलन प्रिये।
अंतर की मधुमयी विकलता
अधरों में छलकी थिरकन
सांसों के मनमोहक सुर में
पलकों का निश्चल आमन्त्रण प्रिये।
याद कर रही अलस सुबह में
रतजगी पलको का स्पंदन
द्वार देहली खड़ी निरखती
भ्रमरों का मादक अनुगूँजन प्रिये।

अरे!वही तो फिर फिर आती
विम्बाधर में मादक थिरकन
अधखुले अधरों पर मानो
जलगुलाब की आयी छलकन प्रिये।
मृदु लालित्य बासन्ती मलयन
की हल्की हल्की सी सिहरन
स्वप्निल मादक नयनों से
मन्दिर माधवी का अभिनन्दन प्रिये।
नवकलिओं के स्पर्श को
सुनो मधुकर का अनुगूँजन
धूप में नहायी पहली किरण
कर रही कैसी प्रणय निवेदन प्रिये।
नींद से भारी अलसायी
यौवन की खुमारी छायी
बोझिल पलके बार बार
किस कदर भेदती उर निर्मम प्रिये।
बौराये आम्र तरुओं से
टपकते रसमंजरी से
भीगी रसा  मदहोश
चला मरुत करने आलिंगन प्रिये।
मतवाली कोयल काली
पुष्पबोझ में झुकी डाली
बाल मन तरंगों वाली

मन माधव का अभिनन्दन प्रिये।
इस मधुरिम बेला में
न रूठो मेरी प्रियतमे
आओ करीब बाहों में
भर करूँ जी भर आलिंगन प्रिये।
            पंकज भूषण पाठक "प्रियम"

Tuesday, February 13, 2018

Happy Kiss Day..13feb लबों की मुलाकात

Happy Kiss Day..13feb
लबों की मुलाकात

आज यूँ ही कुछ
नई बात हो जाय
लबों का लब से यूँ
मुलाकात हो जाय।

एक अहसास है
जो मुहब्बत का
दिल से दिल की
वो बात हो जाय।

यूँ सुर्ख गुलाब से
महकते अधरों से
इश्क़ की सारी वो
दिनरात हो जाय।

अंगार से दहकते
तेरे होठो का मेरे
होठों से एक पल
का साथ हो जाय।



चुम्बन इश्क़ का
ही मतलब नही
प्रेम के हर रूप
की सौगात हो जाय।

जिस्म से रूह तक
उतर जाने का
होठों का लबों से
ऐसी बात हो जाय।

बन्द आंखों में ही
सारी रात हो जाय
खुले लब तो होठों
से मुलाकात हो जाय।

©पंकज प्रियम

Zoology rc