Wednesday, January 31, 2018

इश्क़ का महीना

इश्क़ का महीना
लोग कहते हैं इश्क़ कमीना है
हम मानते हुस्न का नगीना है।
देखो चली है हवा ये कैसी
आ रहा मोहब्बत का महीना है।
जनवरी संग देखो गयी सर्दी
प्यार का ये फरवरी महीना है।
वेलेंटाइन पश्चिमी खिलौना है
यहां तो सदियों से मनता
रहा मदनोत्सव का महीना है।
सोलहो श्रृंगार करती सजनी
आ रहा उसका जो सजना है।
यमुनातट आया कृष्ण कन्हैया
संग राधा नाचती ता ता थैया है।
मुरली के धुन पर गोपियां क्या
वृंदावन की नाची सारी गैया है।
फूलों की सुगंध देखो मकरंद
कैसा उड़ता फिरता बौराया है।
बागों में लगे है फूलों के झूले
झूलती सजनी संग सजना है
धरा पे पुष्पों सजा ये गहना है
आया मोहब्बत का ये महीना है।
वंसतोत्सव में झूमता सदियों से
आर्यावर्त का नाता ये पुराना है
प्रेम की हम तो पूजा करते
नही वासना का झूठा बहाना है।
कृष्ण राधा का मीरा का माधव
रति कामदेव का ये महीना है
आया मोहब्बत का ये महीना है
इश्क़ वाला ये फरवरी महीना है।
   © पंकज भूषण पाठक "प्रियम"



ग्रहण

जीवन का संदेश देता है ग्रहण
-------------------------------------------
वो चाँद है इसलिए तो लगता है ग्रहण
सूर्य के तपिश को भी छू लेता है ग्रहण।

चांद की चांदनी सूरज की श्वेत किरण
दोनो का ही तो मजा ले लेता है ग्रहण।

देवासुर मेल नही राहू का ये खेल नही
चांद-सूरज और धरती का ये है मिलन।

फिर होती चांदनी न घटता सूर्य किरण
चन्द घड़ी कुछ ही पलों का तो है ग्रहण।

खौफ नही बड़ा संदेश दे जाता है ग्रहण 
सुख दुःख का अद्भुत संगम है ये जीवन।

चांद व सूरज में जब लग जाता है ग्रहण
हम क्या है बहुत अबोध होता है जीवन।

तभी तो कहता 'प्रियम" तुमसे ऐ जीवन 
जी लो जीभरकर जैसे हो आखिरी क्षण

किरणों से हंसी बिखेरता चलता रह तू
उल्फ़त की राह में भी हरपल हर क्षण।
       © पंकज भूषण पाठक "प्रियम"

ग्रहण

जीवन का संदेश देता है ग्रहण
-------------------------------------------
वो चाँद है इसलिए तो लगता है ग्रहण
सूर्य के तपिश को भी छू लेता है ग्रहण।

चांद की चांदनी सूरज की श्वेत किरण
दोनो का ही तो मजा ले लेता है ग्रहण।

देवासुर मेल नही राहू का ये खेल नही
चांद-सूरज और धरती का ये है मिलन।

फिर होती चांदनी न घटता सूर्य किरण
चन्द घड़ी कुछ ही पलों का तो है ग्रहण।

खौफ नही बड़ा संदेश दे जाता है ग्रहण
सुख दुःख का अद्भुत संगम है ये जीवन।

चांद व सूरज में जब लग जाता है ग्रहण
हम क्या है बहुत अबोध होता है जीवन।

तभी तो कहता 'प्रियम" तुमसे ऐ जीवन
जी लो जीभरकर जैसे हो आखिरी क्षण

किरणों से हंसी बिखेरता चलता रह तू
उल्फ़त की राह में भी हरपल हर क्षण।
       © पंकज भूषण पाठक "प्रियम"



Tuesday, January 30, 2018

देवताओं का प्रेम

प्रेम तो कान्हा ने भी किया
राधा संग खूब रास किया ।
राम की तो जान थी सिया
जिनके लिए क्या न किया।
इनका जन्मदिन मनता है
या विजय दिवस मनता है।

प्रेम के प्रतिमूर्ति कृष्ण की रासलीला जगजाहिर है। राधा के प्रति उनका अगाध प्रेम और राधा का भी निश्चल प्रेम की दुनिया मिसाल देती है। कृष्ण ने एक प्रेमी के रूप में राधा के साथ अटूट प्रेम किया तो द्वारिकाधीश के रूप में रुक्मिणी और सत्यभामा से भी अलौकिक प्रेम किया। राम और सीता तो एक दूसरे को समर्पित जीवन थे। जिनके बगैर उनके जीवन का कोई अस्तित्व ही नही था। लेकिन इनके प्रेम या व्याह की वर्षगाँठ नही मनती। कृष्ण और राधा का जन्म पर त्यौहार मानता है वही भगवान राम के अवतरण पर रामनवमी के पर्व मनाया जाता है। बाकी अन्य देवी देवताओं की पूजा त्यौहार अलग अलग मौकों पर मनायी जाती है।सभी देवताओं में शायद शिव और पार्वती के ही शादी की सालगिरह इतनी धूमधाम से मनती है। तुलसी विवाह भी मनाया जाता है लेकिन व्यापक पैमाने पर नही। पार्वती ने घनघोर तपस्या कर शिव को प्रसन्न किया तो उसे तीज के रूप में महिलाएं मनाती है और फिर दोनों की शादी के वर्षगाँठ के अवसर पर शिवरात्रि का त्यौहार मनाया जाता है। इस हिसाब से प्रेम के मामले में तो बम भोले सभी देवों में सबसे आगे निकल जाते हैं।
मेरी जानकारी बहुत अधिक नही बस दिल मे ख्याल आया तो लिख दिया। इस विषय पर आपसबों का बहुमूल्य ज्ञान अपेक्षित है

ये भी इश्क़ है


जरूरी तो नही सब कुछ बयाँ कर दे मुहब्बत में
उनके नाम कोरा कागज ही भेज देना भी इश्क़ है।

उनकी परेशानी का हम कोई सबब न बन जाएं
इस ख्याल से पास उनके नही जाना भी इश्क है।

जिसकी एक झलक को उनके शहर चले आते थे
बिन मिले घर के करीब से गुजर जाना भी इश्क़ है।

जिनकी एक तस्वीर भी चुपके रख लिया करते थे
देखे बिना उनके करीब से गुजर जाना भी इश्क़ है।

जिनकी चाहत में हर रोज इंतजार किया करते थे
उनकी मोहब्बत से खुद निकल जाना भी इश्क है।

इजहार में इनकार के ख्याल से डर जाया करते थे
इकरार के इंतजार में वर्षो गुजार लेना भी इश्क़ है।

जिनकी लबो के हंसी के तलबगार हुआ करते थे
उनकी खुशी में खुद खामोश हो जाना भी इश्क़ है।

उन्हें पता भी नही यादों में कैसे हम रोया करते थे
चाहत को उनसे  यूं  नही जताना भी तो इश्क है।

© पंकज भूषण पाठक 'प्रियम"


Monday, January 29, 2018

दिल का सफ़र

तुमसे मिलकर इतना तो हमने जाना था
 तुम्हे समझने में इतना तो वक्त लगना है

जिस्म नही तुम्हारे रूह तक हमे जाना था
दूरी तय करने में इतना तो वक्त लगना है।

नजरों के फासले तो यूँ ही मिट जाना था
दिल के सफर में इतना तो वक्त लगना है।

आँखों में नही तेरे सपनो में बस जाना था
ख्वाबों के रास्ते इतना तो वक्त लगना है।

आसान कहां तुम्हे इतना जल्द पाना था
इश्क़ की दरिया में इतना तो वक्त लगना है

©पंकज भूषण पाठक "प्रियम"

Sunday, January 28, 2018

कैनवास में रंग

ये कुछ मेरे पेंटिंग है जो पन्नों में कहीं छुपे थे और कुछ फेसबुक में । इसबार सरस्वती पूजा में फाइल और किताबों की साफसफाई के दौरान कुछ मिले(पेंसिल स्केच) तो सोचा अपने बचपन के शौक को शेयर कर दूं। बहुत सुंदर तो नही है लेकिन आप सबों के बीच है। स्कूल में मेरा कॉपी तस्वीरों से भरा होता था जिसके लिए https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=2023589851261861&id=1786735821613933अक्सर डांट मिलती थी। तब हमारे स्कूलों में पेंटिंग की कोई पढ़ाई या प्रशिक्षण की व्यवस्था नही थी। अपने शौक को कभी कभार कागजों में उतार दिया। कुछ दोस्तों में बांट दिए तो कुछ रिश्तेदारों ने यादगारी में रख लिया। बचपन की बनाई कई तस्वीरें कहीं न कहीं खो गई कुछ मिली तो रख लिया है। अब तो जीवन की आपाधापी में अपना ये शौक अधूरा ही रह गया है...

Friday, January 26, 2018

तुम तितली बन जाओ



तुम तितली बन जाओ
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रंग विरंगी फूलों का
क्या खूब सजा श्रृंगार है
तुम तितली बन जाओ
बागों में आई बहार है।

हम कांटों में सज जाए
फूलों से तुझे जो प्यार है
तुम तितली बन जाओ
गुलाब बनने को तैयार हैं।

वासन्ती मलयन संग
मकरन्द करत गुँजार है
नवकलियों का यौवन
प्रेम निवेदन स्वीकार है

कामदेव का रति से
चला प्रणय अनुराग है
बावली बन फिर रही
तितली बैठी पराग है।

वासन्ती रंग रँगी वसुधा 
फिजां में छाई बहार है।
फूलों का ओढ़ चादर
सजा सोलह श्रृंगार है।

रस से भीगी है रसा जो
बनी हर कली शबाब है
तुम तितली बन जाओ
बने हम तेरा गुलाब हैं।

फूलों से तितली का जीवन
तितली फूलों का श्रृंगार है
तूम पी लो सारा रस मेरा
हम मुरझाने को तैयार हैं।

©पंकज भूषण पाठक"प्रियम"
26.1.2018

झंडा तिरंगा



आओ फिर देशभक्ति का गीत दोहराते है
राष्ट्रीय पावन पर्व का रस्मों रीत निभाते हैं।

स्वाधीन भारत के गणतंत्र पर फिर से
एक दिन के अवकाश का जश्न मनाते है।

सज संवर कर देखो नेता अफसर आते हैं
घोटालों की कालिख खादी  में छुपाते हैं।

भविष्य देश के भूखे सड़क सो जाते हैं।
भ्रस्टाचारी जेल में भी बटर नान खाते है ।

सरहद पे जवान गोली से नही भय खाते हैं
अपने देश के गद्दारों की गाली से घबराते हैं।

राजनीति पर चौपाल पे चर्चा खूब कराते है।
गन्दी है सियासत इसबात पे ठहाके लगाते है

पर इस कचरे को साफ करने से कतराते हैं।
घर आकर टीवी और बीबी से गप्पें लड़ाते हैं।

सच्चाई सिसकती कोने में झूठे राज चलाते है
भ्रस्टाचारी का डंडा , झंडा तिरंगा फहराते हैं।

तिरंगे को देना है सम्मान अगर
देश का रखना अभिमान अगर
आओ मिलकर फिर एक कसम हम खाते हैं।
देश से भय भूख और भ्रस्टाचार मिटाते है।

जंगे आज़ादी का गीत फिर एकबार दोहराते हैं।
आओ स्वाधीनता के गणतंत्र का जश्न मनाते है।

कट्टरता के जंजीरो से समाज को मुक्त कराते हैं
वन्देमातरम जय हिंद का नारा बुलंद  कर जाते है।


             ©पंकज भूषण पाठक "प्रियम"
                        25.1.18


Thursday, January 25, 2018

गणतंत्र

आया दिवस गणतंत्र है
फिर तिरंगा लहराएगा
राग विकास दोहराएगा
देश अपना स्वतंत्र है
आया दिवस गणतंत्र है।

नेहरू टोपी पहने हर
नेता सेल्फ़ी खिंचाएगा।
आज सत्ता विपक्ष का
देशभक्ति का यही मन्त्र है
आया दिवस गणतंत्र है।

चरम पे पहुची मंहगाई
हर घर मायूसी है छाई
नौ का नब्बे कर लेना
बना बाजार लूटतंत्र है
आया दिवस गणतंत्र है।

भुखमरी बेरोजगारी
मरने की है लाचारी
आर्थिक गुलामी के
जंजीरो में जकड़ा
यह कैसा परतन्त्र है
आया दिवस गणतंत्र है।

सरहद पे मरते सैनिक का
रोज होता अपमान यहाँ
अफजल याकूब कसाब
को मिलता सम्मान यहां
सेक्युलरिज्म वोटतंत्र है
आया दिवस गणतंत्र है।

सेवक कर रहा है शासन
बैठा वो सोने के आसन
टूजी आदर्श कोलगेट
चारा खाकर लूटा राशन
लालफीताशाही नोटतंत्र है
आया दिवस गणतंत्र है।

भगत -राजगुरु- सुभाष-गांधी
चला आज़ादी की फिर आँधी
समय की फिर यही पुकार है
जंगे आज़ादी फिर स्वीकार है
आ मिल कसम फिर खाते हैं
देश का अभिमान जगाते हैं।
शान से कहेंगे देश स्वतंत्र है
देखो आया दिवस गणतंत्र है।
      ©पंकज भूषण पाठक"प्रियम"
        25.1.2018

Wednesday, January 24, 2018

इश्क़ है


           इश्क़ है
कहते हैं एक आग का दरिया है
उसमे डूब कर जाना ही इश्क है।

ये जरूरी तो नही की रोज बात हो
लबों पे नाम आ जाना भी इश्क है

ये जरूरी तो नही रोज मुलाकात हो
यूँ तन्हाई में गुजर जाना भी इश्क है।

भले होठो पे न दिल के जज़्बात हो 
शब्दों में यूं बह जाना भी तो इश्क है

तेरी शोहबत की भले न कोई रात हो
बन्द आंखों में बस जाना भी इश्क है।

छोटी छोटी बातों पे रोज रुठ कर तेरा
रात मुंह फेर सो जाना भी तो इश्क है।

फिर अलसायी सुबह बिस्तर पे मेरा
गर्म चाय ले के आना भी तो इश्क है।

आंखों से भले तेरा कोई इज़हार न हो
ख्वाबों में यूँ आजाना भी तो इश्क है।

दिल से भले तेरा मुझसे इकरार न हो
सांसों में धड़क जाना भी तो इश्क है।

चलो माना कि नही है मोहब्बत हमसे
मेरा हर पोस्ट छू जाना भी तो इश्क है।

चलो माना कि कोई रिश्ता नही हमसे
ख्वाहिश पे DP बदल जाना भी इश्क है।

चुटकी भर लाली से रिश्ता जिंदगी का
ये माथे की बिंदी सा चुटकी भर इश्क है।

राधा के नाम हर शाम यमुना किनारे
माधव का यूँ मुरली बजाना भी इश्क है।

श्याम श्याम राग जपते रानी मीरा का
प्रेम में जहर पी जाना भी तो इश्क है।

राम राम जपते वन में बूढ़ी शबरी का 
जूठे बेर भगवन का खाना भी इश्क है।

खामोशी लबों पे तो आंखों में नमी है
दिल धड़कता इश्क है इश्क है इश्क है।

©पंकज भूषण पाठक"प्रियम"


Tuesday, January 23, 2018

कैसी आज़ादी

वीणा vs डीजे

कोई गाना गलत नही होता बस उसके उपयोग के समय का चयन सही होना चाहिए।
अगर कोई गाना हिट है तो उसके लेखक और संगीतकार की कला सिद्ध हो जाती है। हाँ सबके लिए समय और अवसर तय है जहां इसकी सार्थकता सिद्ध हो। शादी व्याह पार्टी में सब चलता है लेकिन सरस्वती और दुर्गा पूजा जैसे मौकों पर ये उचित नही। आपकी आज़ादी वहां तक है जहाँ आपकी हाथ किसी की नाक को न छुए।

वीणा vs DJ
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मां शारदे कहां तू
         बीणा बजा रही है
किस धुन में देखो डीजे
        सबको नचा रही है
भक्ति में तेरी डीजे
    क्या धुन सजा रही है।
लपालप कमर हिलाके
       जिला हिला रही है।
राती दिया बुझाके
    पिया क्या गा रही है।
तेरी पूजा में देखो
     कैसी हुड़दंग मचा रही है।
कैसे बजे है डीजे
           सबको सता रही है।
कैसे अश्लील गाने
          सबको रुला रही है।
हे माँ! अब तू सुनले
जरा इनको तू धुन ले
तेरी भक्ति में फिर
न ऐसी गलती कर ले।
हैं सब तुम्हारे ही बच्चे
मन के हैं थोड़े कच्चे
पर दिल के भोले सच्चे
इनको तू माफ करना
बस थोड़ा ज्ञान भर दे
वीणावादिनी तू वर दे
बुद्धि दे तू इनको
तेरी भक्ति में जो
    अश्लीलता सजा रही है
मां शारदे कहां तू
        वीणा बजा रही है।
©पंकज भूषण पाठक "प्रियम"
    23.1.2018

Monday, January 22, 2018

783. ऋतुराज बसंत

ऋतुराज बसंत

हुआ बसन्त का है जो आगमन
महक उठा है सारा वन उपवन।
खिले फूल जो मचल उठा है मन
संग मौसम बदला है नजारा,
हुई जवां कली खिल उठा है तन।
बागों ने ओढ़ी फूलों की चादर,
महकी धरा मस्त झूमा है गगन।
तरुण लताएं खुद में सिमट रही,
शरमाती कलियां यूँ लिपट रही।
फिजाओं ने छेड़ा जो मुक्तराग,
कोयल भी मधुर गीत गा रही।
आम्र तरुओं की बात निराली,
मंजरों के बोझ झुकी है डाली।
टपकता रस सुगन्ध फैला रहा,
मदमस्त हो मकरन्द बौरा रहा।
नव कलियों को छूने को आतुर,
बावला बन फिर-फिर रहा पवन।
हुआ बसन्त का है जो आगमन,
महक उठा है सारा वन उपवन।
                 © पंकज प्रियम

मधुमास

अभिनन्दन प्रिये
मधुमास के प्रथम दिवस में
है प्रियम का ये अभिनन्दन प्रिये
पूर्णचन्द्र की क्षीण कला सी
अम्बर को छूती चपला सी
लहराई यूँ कनक लता सी
धरा अम्बर का है ये मिलन प्रिये।
अंतर की मधुमयी विकलता
अधरों में छलकी थिरकन
सांसों के मनमोहक सुर में
पलकों का निश्चल आमन्त्रण प्रिये।
याद कर रही अलस सुबह में
रतजगी पलको का स्पंदन
द्वार देहली खड़ी निरखती
भ्रमरों का मादक अनुगूँजन प्रिये।
अरे!वही तो फिर फिर आती
विम्बाधर में मादक थिरकन
अधखुले अधरों पर मानो
जलगुलाब की आयी छलकन प्रिये।
मृदु लालित्य बासन्ती मलयन
की हल्की हल्की सी सिहरन
स्वप्निल मादक नयनों से
मन्दिर माधवी का अभिनन्दन प्रिये।
नवकलिओं के स्पर्श को
सुनो मधुकर का अनुगूँजन
धूप में नहायी पहली किरण
कर रही कैसी प्रणय निवेदन प्रिये।
नींद से भारी अलसायी
यौवन की खुमारी छायी
बोझिल पलके बार बार
किस कदर भेदती उर निर्मम प्रिये।
बौराये आम्र तरुओं से
टपकते रसमंजरी से
भीगी रसा  मदहोश
चला मरुत करने आलिंगन प्रिये।
मतवाली कोयल काली
पुष्पबोझ में झुकी डाली
बाल मन तरंगों वाली
मन माधव का अभिनन्दन प्रिये।
इस मधुरिम बेला में
न रूठो मेरी प्रियतमे
आओ करीब बाहों में
भर करूँ जी भर आलिंगन प्रिये।
            पंकज भूषण पाठक "प्रियम"



Friday, January 19, 2018

बवाल हो गया

बवाल हो गया
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तुम्हारे हर प्रश्न का मैं सवाल हो गया
मांगा जो जवाब तो बस बवाल हो गया
तुम्हारी बन्दगी में गुजार दी जिंदगी मैंने
चाहा दो पल का साथ बवाल हो गया।

ढूंढते रहे तुम मोहब्बत सड़क दुकानों में 
दिखाया आंखों में इश्क  बवाल हो गया
चले आते हो हर रोज तुम मेरे सपनों में
पूछा जो उनका ख्याल बवाल हो गया।

तेरी यादों में  गुजरती है आंखों में रातें
वो किस्से वो अपनी मोहब्बत की बातें
छुपकर तो कब से  बैठे हो मेरे दिल मे
मांगा उसका हिसाब बवाल हो गया।

रोज रहता है तुम्हारे लबों पे नाम मेरा
हमने ले लिया तो बस बवाल हो गया
चुरा के रखा है पास अपने  दिल मेरा
हाल  पूछा उसका तो बवाल हो गया।
    ©पंकज भूषण पाठक "प्रियम"

19.01.2018

Friday, January 12, 2018

अदालत का झगड़ा

कैसा ये झगड़ा है?
**************
ऑफिस में टेबल का झगड़ा
कुर्सी पद का होता रगड़ा
           घर घर चूल्हे का आम लफड़ा है।
गांव डगर हर नगर होता
खेतों के बटवारे का झगड़ा है।
अब तो न्याय के मंदिर में
देखो  कैसा ये खास झगड़ा है
             अदालत का कैसा ये लफड़ा है।
इंसाफ का मंदिर जनता का भरोसा
झगड़ों का फैसला करती है अदालत
न्याय के दर में हुआ कैसा
केसों के बटवारे का लफड़ा है।
                अदालत का कैसा ये झगड़ा है।
पंच होता परमेश्वर यहां
न्यायमूर्ति ईश्वर जहां
उस इंसाफ के मन्दिर में
देखो कैसा हुआ ये रगड़ा है।
                  अदालत का कैसा ये झगड़ा है।
न्याय को जनता जाती अदालत
जज ही लेकर केस अपना
खटखटा रहे जनता की अदालत।
हे कानून की देवी
अब तो खोल लो
अपने आंखों की पट्टी
देख झुक गया कैसे
तेरे तराजू का एक पलड़ा है।
                 अदालत का कैसा ये झगड़ा है।
जनता किस दर पे जाये
किस मन्दिर इंसाफ पाये
तारीख पर तारीख तो
सह ले, पर इस सवाल पे
आज हर मन उखड़ा है
             अदालत का ये कैसा झगड़ा है।
न्याय के दर पे ही
हो अन्याय अगर
तो सवाल उठता
जरूर अंदर कोई लफड़ा है।
             अदालत का ये कैसा झगड़ा है।
शर्म से झुका है देश सारा
कैसा हुआ परिवेश हमारा
क्या नौबत थी ऐसी आनी
इतिहास की बनी कहानी
              क्या जज भी जज से लड़ा है?
              न्याय को खुद जन में खड़ा है।
              केस बटवारे का कैसा ये लफड़ा है
              अदालत का कैसा ये झगड़ा है?
                         
             ©पंकज भूषण पाठक "प्रियम"
                12.01.2018

उठा लो गांडीव हे पार्थ *******************

             
   उठा लो गांडीव हे पार्थ
*********************
सच है युद्ध कोई पर्याय नही
पर बिन इसके अब उपाय नही
जब संकट में पड़ा हो देश
कहां शोभती दया शांति वेश
हो रहा हरपल मानव का संहार
संयम साहस को कर रहा ललकार
है पाप नही,पूण्य है ये
आतंक के खिलाफ उठाना हथियार
देख अपनो को खड़ा कुरुक्षेत्र में
अर्जुन ने जब युद्ध से किया इनकार
कृष्ण ने तब भरी हुँकार
उठा लो गांडीव हे पार्थ!
कर डालो दुष्टों का संहार
परिस्थितियां फिर है वही
हो रहे धमाके,बंदूके बरस रही
दहशत में जिन्दगी बसर रही
उजड़ गयी मांगे कितनी
गोदें कितनी सूनी हो रही
शांति की राह में मिला है धोखा
इन पथरायी आंखों मे
आंसू नही खून का है कतरा सूखा
बूढ़ी नजरों को है बेटे का इंतजार
खड़ी है बहनें लिए राखी का प्यार
इन अबलाओं के आँचल है खाली
मेंहदी से पहले उजड़ी सुहाग की लाली
आतंकी,उग्रवादी को नही क्षमा अधिकार
समय कह रहा फिर बार बार
अमन चैन की खातिर 
उठा लो गांडीव हे पार्थ।
कर डालो दुष्टों का संहार।









पंकज भूषण पाठक "प्रियम "

प्रेमपुष्प

प्रेमपुष्प
💐💐💐💐💐💐💐💐
मैं ये नही कहता कभी
तुम ये करो ,ये ना करो
मैं शामिल रहूँ जहां
                तुम सारे वो काम करो।
तेरी सांसो में महकता रहूँ
दिल मे हरपल धड़कता रहूँ
टूट न जाये जीवन की डोर
             तुम ऐसा न कभी तान भरो।
तेरे नाम का एक हिस्सा हूँ मैं
तेरे नाम का एक किस्सा हूँ मैं
छलक गिर जाये न जमीं पे
                   ना तुम इतना जाम भरो।
मेरी ख्वाहिश यही तमन्ना मेरी
दर्पण में तूझे बस मैं ही दिखूं
सपनों में बस मैं शामिल रहूँ
               मेरा इंतजार सुबहो शाम करो।
सुबह की अलसायी नींद में तुम हो
सर्द गुलाबी दुपहरी धूप में तुम हो
गोधूलि खलती है बड़ी,शाम में भी
                     मिलने का इंतजाम करो।
कर दिया है खुद को नाम तेरे
हरपल हर क्षण हम साथ तेरे
मैं तो तेरी हंसी का तलबगार हूँ
                  नाम करो या बदनाम करो।
मेरी शोहरत मेरे नाम
सब कुछ  हैं तेरे नाम
 मेरी वफ़ा को यूँ न कभी
                  तुम सरेआम नीलाम करो।
सारे जहां में  बदनाम
हो जाये कोई गम नही
नजरो से खुद गिर जाए
                 तुम न कोई ऐसा काम करो।
तेरी हर बात तेरे जज़्बात
हर काम मेरी परछाई हो
फक्र से नाम ले अपना
               तुम सदा ऐसा काम करो।
पलभर की जुदाई मंजूर है
गमों की तन्हाई भी मंजूर है
कसक उठ जाती है दिल मे
              तुम गैरों का न गुणगान करो।
तुझसे और क्या कहूँ मैं
ख्वाबों को जान जाता हूँ मैं
चाँद सितारे तो नही पास मेरे
                 प्रेम पुष्पों का ही श्रृंगार करो।
चाँद तारे तोड़ लाने की बातें
करते वही जिनके हैं झूठे वादे
सच्ची मोहब्बत के सिवा
नही कुछ पास मेरे, हो सके तो
              तुम मेरे इश्क से ही मांग भरो।
              मेरे प्रेमपुष्पों का ही श्रृंगार करो।

                                    ©पंकज भूषण पाठक"प्रियम"
                                       1 दिसम्बर 2002

न्यू इंडिया की गाथा सुनाते हैं ^^^^^^^^^^^^^^^^

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आओ भारत
तुम्हे तुम्हारी
नई तस्वीर दिखाते हैं
ठंड से ठिठुरते
भूख से मरते
न्यू इंडिया की
विकास गाथा सुनाते हैं।
कुत्तों को मिलता
दूध बिस्किट गहना
मखमली स्वेटर पहना
फरारी में सैर कराते हैं।
भूख से बिलखते
गरीब के बच्चे
कचरों से चुन
फेंका निवाला खाते हैं।
अखबारों में लिपट सिमट
पूस की रात भी ठंड में
सिकुड़, बीच सड़क सो जाते हैं।
खूब हो रही विकास की बातें
रोजगार सृजन समृद्धि की बातें
लेकिन किसान फांसी में झूल जाते हैं।
अच्छे दिन का था ख्वाब दिखाया
पर हाय!ये कैसा दिन है आया
आसमान छूती डायन मंहगाई
चूल्हे चौके पर है आफत आयी
पेट्रोल डीजल दुगुने दाम भरवाते हैं
फिर भी खूब सारे टैक्स चुकाते है।
जाति मजहब की लड़ाई
धर्म मे लड़ते भाई भाई
अपने ही अपनों का खून बहाते हैं।
छूट रहे हैं बड़े नेता भ्रस्टाचारी
नाबालिक हो जाते बलात्कारी
कोर्ट में पिसती जनता बेचारी
न्याय के दर आते चप्पल घिस जाते हैं
बड़े अपराधी बाइज्जत बरी हो जाते हैं।
जाति धर्म दीन दलित का नारा
अल्पसंख्यक वोट बैंक तुम्हारा
यही सियासत करते यूँ साल गुजर जाते हैं
हाथ जोड़ फिर नेता जनता को ठग जाते हैं।
अनाज है गोदाम में सड़ता
लेकिन गरीब है भूखे मरता
सेल्फी खींच खिंच कम्बल बंटवाते है
और गरीब बेचारे ठंड से मर जाते हैं।
दिखता नही विकास कहीं
लगता है परिहास यही
वो हैं कि विकास विकास चिल्लाते हैं।
आओ भारत तुम्हे तुम्हारी
न्यू इंडिया की गाथा सुनाते हैं।
पाकिस्तान है आंख दिखाता
चीन को भी तू नही सुहाता
दिल रोता नही क्या तुम्हारा
जब अपने भी उनके साथ खड़े हो जाते हैं
दुश्मनों की औकात नही
उनमे वो कोई बात नही
जो काम अपने देश के गद्दार कर जाते हैं।
आओ भारत तुम्हे तुम्हारी
न्यू इंडिया की तस्वीर दिखाते हैं।
        ©पंकज भूषण पाठक"प्रियम"
           11.01.2018

Wednesday, January 10, 2018

गरीब मर गया

गरीब मर गया
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जिंदगी की दुआ मांगती भीड़ से,
मजारों में चादर बेशुमार भर गया
और मुफ़्त दुआएं रोज बाँटता वो, 
बाहर ठंड में वो फ़कीर मर गया।

मन्दिर, मस्जिद,चर्च औ गुरुद्वारा,
इसमे ही बंट गया है ये जग सारा।
दूध पकवान से मन्दिर भर गया,
और भूख से एक गरीब मर गया।

सत्ता सरकार और सियासतें,
बस करती विकास की बातें।
मरने पर बांटती है वो खैरातें,
दो निवाले को वो गुज़र गया।

ठंड और भूख से मौत कभी,
कोई भी सरकार मानती नही।
बिन आधार-कार्ड के अब तो,
किसी को शासन जानती नही।

आधार नहीं तो अनाज नहीं,
कम्बल और आवास नहीं।
भात-भात कहते सन्तोषी,
का स्वर पल में बिखर गया। 

 कम्बल ओढ़ घी कोई पीता रहा,
 बिन कम्बल के कोई जीता रहा।
 टूट गयी सांस ठिठुरते चन्दो की, 
और फिर गरीब ठंड से मर गया।

हवाई जहाज आसमां उड़ाने को,
उजाड़ा गरीबों के आशियाने को।
प्लास्टिक की झोपड़ी में मुआवजे, 
की आस में एक पोचा गुजर गया।
         
मौत के बाद मुआवजे का तमाशा,
चन्द नोटों के नेताओं का दिलासा
लाश पर चन्द हजार बाबू धर गया
ठंड और भूख से जो था मर गया।

©पंकज भूषण पाठक"प्रियम"

Tuesday, January 9, 2018

तुम हो

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तुम हो

जब भोर की देहरी पर
पक्षियों के कलरव के
साथ आंख खुलती है।
और अलसायी भारी
पलकों से निहारता हूँ
           तो लगता है कि तुम हो।
गर्म विस्तर छोड़ने को
जी नही करता
फिर आंखे बंद कर
तकिये में छुपता  हूँ
           तो लगता है कि तुम हो।
सर्द भाप निकलते
कंपकपाते होठो से
गर्म चाय की प्याली लगाता हूँ
              तो लगता है कि तुम हो।
खिड़की के शीशे को चीरती
अरुण लालिमा लिए किरण
मेरे वदन को छू जाती है
             तो लगता है कि तुम हो।
दिन की शुरुआत में
मेरी हर बात में
दिल से निकले जज़्बात में
                       तुम ही तो हो।
दिनभर की भागदौड़
व्यस्तता में चूर चूर
थोड़ी देर नरम छांव में
पलक झपकाता हूँ
              तो लगता है कि तुम हो।
शाम में सूरज जब होता
अस्ताचल को अग्रसर
लौटते घर पक्षी नभपर
संग संग उनके चलता हूँ
             तो लगता है कि तुम हो।
शांत निश्चल रात्रि पहर
घड़ी की टिक टिक टिक
भंग करती तन्मयता में
आंखों को बंद कर लेता हूँ
            तो लगता है कि तुम हो।
सुरमयी सुंदर
सपनों की जहां में
खुद को शहंशाह सा
मुट्ठी में सारे जहां को पाता हूँ
              तो लगता है कि तुम हो।
दरिया में गुलाब
बहकर आता उसे
उठाके अपने लबों से
जब लगाता हूँ
        तो लगता है कि तुम हो।
दूर तलक एक गीत सदा
मेरे दिल को भेदती
थामकर दिल को जब
करीब जाता हूँ
      तो लगता है कि तुम हो।
बन्द आंखों में कोई तस्वीर
उभर कर बारबार मुझे
नर्म हाथो से कोई
ख्वाबों में सहलाता है
       तो लगता है कि तुम हो।
मेरी हर सांस मेरी धड़कन
मेरी रूह मेरे कण कण
मेरे आंसू मेरे मुस्कान
मेरे गीत मेरे साजो गज़ल
मेरे हर बात मेरे जज्बात।
           बस तुम ही तुम हो ।
  
©-पंकज भूषण पाठक"प्रियम"-
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Monday, January 1, 2018

पाक नापाक-3

पाक नापाक-3
अरे पाक ! तू फिर औकात पे उतर आया है
चोरों सा मुंह अंधेरे पुलवामा घुस आया है।
दुनिया नववर्ष के स्वागत में खड़ी थी
तुझे ये शर्मनाक हरकत की पड़ी थी!!

सलाम है उन वीर जवानों को
सरहद के अलबेले मस्तानों को
क्या खूब दुश्मनों को धोया है
तेरी शहादत पे फिर भारत रोया है।

अरे पाक!क्या भूल गया तू जंग सारा
हरबार तो कटा है एक अंग तुम्हारा
अमन चैन के दुश्मनों को साथ लाया है
क्या पठानकोठ का सालगिरह मनाया है?

अरे! हिम्मत है तो सामने मैदान में आओ
यूँ न रात अंधेरे अपना अभिमान दिखाओ।
ख़ंजर घोंपा तूने देखा जब देश पूरा सोया है
तेरी नापाक हरकतों से तेरा जिन्ना भी रोया है।

बहुत हो चुका अब तो युद्ध अनिवार्य है
तुझे सबक सिखाने हर जंग स्वीकार्य है
तू रोएगा जार जार हमने तो चार खोया है
मत भूल अपनी तबाही जब भारत रोया है
  जब जब भारत रोया है तूने अपना अंग खोया है।
      ©पंकज भूषण पाठक"प्रियम"
        01.01.2018

ये उन दिनों की बात है

ये उन दिनों की बात है...

फ़ास्ट होती जिंदगी में बधाइयां भी बहुत एडवांस हो चली है। मोबाइल और सोशल मीडिया ने इसे बहुत आसान लेकिन सामान्य सा कर दिया है। एक ही संदेश बार बार फोरवर्डेड होने लगे हैं और कईबार तो अपना बनाया सन्देश भी किसी अन्य के जरिये लौट आता है वो भी नाम बदलकर। पहले अपने मित्रों और सगे सम्बन्धियो को नववर्ष की बधाई ग्रीटिंग्स कार्ड से दी जाती थी जिसके लिए दिसम्बर के पहले सप्ताह से ही कार्ड की खरीदारी और पोस्ट करने का सिलसिला शुरू हो जाता था। एक से बढ़कर एक ग्रीटिंग्स ,हैप्पी न्यू इयर बोलने वाले कार्ड । मैं इस मामले में थोड़ा अलग प्रयास में रहता था। खुद फूल पत्ति और कागजों से पेंटिंग बनाकर कार्ड भेजता था। पूरा दिसम्बर इसी में गुजर जाता था। लेकिन कार्ड तैयार करने के बाद खुद को आर्चीज का बाप समझता था बड़ा मजा आता था। फिर उसमें 4-5 रुपये गांधी छाप डाक टिकट चिपका कर नाते रिश्तेदारों और दोस्तों के घर भेजता था। फिर इंतजार रहता था जवाबी कार्ड का। किसी का आया तो खुश नही जिसका आया उसके नाम अगले साल की सुपारी ले लेता था कि छोड़ना नही है उसको।  सच मे क्या दिन थे वो भी ,बिना मोबाइल ,बिना इंटरनेट के प्यार इश्क और मुहब्बत की इंतजार वाली बातें भी इतनी गहरी हो जाती थी कि अब लाइव वीडियों कॉल में भी उस टाइप की फीलिंग्स नही हो पाती है।पहली जनवरी तक ग्रीटिंग्स कार्ड मिला कि नही ये भी सस्पेंस बना रहता था। कॉलेज के दिनों में गिने चुने पड़ोसियों के घनचकरी वाले लैंडलाइन फोन का सहारा था। फिर घर मे भी फोन कनेक्शन हुआ तो अधिक पढ़ाई के प्रेशर में दोस्ती का कम्प्रेसर कम पड़ गया। फिर कामधाम भागदौड़ के बीच जेब मे मोबाईल आया तो sms और कॉल के जरिये बधाइयों का सिलसिला चलता रहा। लेकिन मोबाइल ऑपरेटर भी कम चालाक नही थे। न्यू ईयर,होली,दीवाली जैसे मौकों पर फ्री सेवा बन्द कर देते या नेटवर्क बिजी कर डबल चार्ज उठा लेते। अब जबकि सोशल मीडिया,4G, वीडियो कॉल जैसी ग्लोबल सुविधाएं है तो वक्त कम  पड़ रहा है। अब तो व्हाट्सप या फेसबुक पर आप सीधे उसकी डिलीवरी देख सकते हैं और तुरन्त जवाब भी मिल जाता है।  लेकिन यहां भी लोगों ने व्यक्तिगत सन्देश से अधिक आसान व्हाट्सएपग्रुप और फेसबुक को बना लिया है। बस अपने टाइमलाइन पर हैप्पी न्यू ईयर टू आल फ्रेंड्स कर काम निकालने लगे है। चिट्ठी पत्री के लंबे सन्देश sms से भी शार्ट होता इमोजी चैट पर आ टिका है।
क्रमशः....

मेरा नाम


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मेरा नाम
मेरा नाम?????

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मेरा नाम किसी के जिक्र का मोहताज नही।
मेरी चाहत किसी के फिक्र का हमराज़ नही।
तो क्या हुआ उनकी लबों में हम आज नही।
खुली किताब है जिंदगी छुपा कोई राज नही।
वो बदल गए, ये उनकी फितरत थी।
कभी उनकी आंखों में मेरी ही सूरत थी।
कसक उठ जाती है देख बेरुखी अपनो की
कभी जो करते थे बातें संग हसीन सपनो की।
नए साल में अपना भी ऐसा काम होगा
हर जुबां पे बस मेरा ही मेरा नाम होगा।
नए वक्त का हर लम्हा हर क्षण यादगार होगा।
लबों पे हंसी दिल मे मुहब्बत बेशुमार होगा।
कल हमारा ही होगा क्या हुआ जो आज नही.
मुसाफिर हूँ इश्क का तेरे कदमों का मोहताज़ नही।
नववर्ष पर बस यूं ही निकले दिल के जज़्बात नही।
मेरा नाम किसी के जिक्र का मोहताज़ नही।
©...✍🏻🌷पंकज प्रियम🌹
01.01.2018.....00:50am
----सभी को नववर्ष की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाए
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