Sunday, October 26, 2014

चुनावी बिगुल में बदलाव की बयार।

चुनावी बिगुल में बदलाव की बयार। .... 

पंकज भूषण पाठक। … 
----------------------------------
 चुनाव आयोग ने झारखंड विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान कर दिया है. राज्य में  पांच चरणों में मतदान की प्रक्रिया संपन्न होगी . राज्य में पांच बड़ी राजनीतिक ताकतें इस बार चुनाव में झारखंड की जनता की कसौटी पर कसी जायेंगी. राष्ट्रीय पार्टी के रूप में भाजपा व कांग्रेस, जबकि क्षेत्रीय दल के रूप में झारखंड मुक्ति मोर्चा, झारखंड विकास मोर्चा व आजसू के लिए यह चुनाव अग्नि परीक्षा होगी.
 
नक्सल प्रभावित राज्य होने के कारण झारखंड में 25 नवंबर, दो दिसंबर, नौ दिसंबर, 14 दिसंबर, 20 दिसंबर को वोटिंग होगी और मतगणना 23 दिसंबर को होगी.इस बार का चुनाव ऐसे माहौल में हो रहा है, जब नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय परिदृश्य में एक मजबूत और पूरे दम-खम वाले नेता के रूप में उभरे हैं. उनकी पार्टी भाजपा को केंद्र के बाद हाल में महाराष्ट्र व हरियाणा में भी सफलता मिली है. हालांकि झारखंड में क्षेत्रीय अस्मिता का सवाल काफी महत्वपूर्ण होने के कारण नरेंद्र मोदी व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के लिए यह चुनाव पूर्व के चुनावों से अलग होगा. मोदी-शाह को यहां के लोगों के सरोकार, झारखंड की जन भावनाओं व झारखंड के लिए लंबे समय तक चले आंदोलन व उसमें हुई शहादत जैसे अहम मुद्दों पर भी जनता से सीधा संवाद करना होगा. वहीं, पिछड़ों, गरीबों, अल्पसंख्यकों व आदिवासियों के लिए राजनीति करने का दावा करने वाली कांग्रेस व उसके शीर्ष नेतृत्व सोनिया गांधी-राहुल गांधी के लिए भी झारखंड और जम्मू कश्मीर चुनाव खोयी साख को पाने का मौका होगा. कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल मौजूदा दौर में ऐतिहासिक रूप से सबसे निचले स्तर पर है. ऐसे में कांग्रेस अगर यहां बेहतर प्रदर्शन करती है, तो वह इस पार्टी के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक तरह से संजीवनी का काम करेगा.राज्य के तीन प्रमुख क्षेत्रीय राजनीतिक दलों झामुमो, आजसू, झाविमो के लिए यह चुनाव नरेंद्र मोदी के बढ़ते राजनीतिक वर्चस्व व करिश्मे को फीका साबित करने का मौका है. ये तीनों पार्टियां झारखंड की अस्मिता व विकास के मुद्दे पर मैदान में उतरेंगी और झारखंड का विकास झारखंड के तरीके से या झारखंड के लोगों की जरूरत के अनुरूप करने का दम भरते हुए वोट मांगेंगी. लोकसभा चुनाव में झामुमो को छोड़ कर झाविमो व आजसू का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा है. ऐसे में तीन दलों और इनके मुखिया क्रमश: शिबू सोरेन-हेमंत सोरेन, सुदेश महतो व बाबूलाल मरांडी के लिए यह चुनाव पूर्व के चुनावों से कई मायनों में अलग होगा.लोकसभा चुनाव में सीटो के बटवारे की लड़ाई और फिर चुनाव नतीजों ने कई विधायको कोराह बदलने पर मजबूर कर दिया। सबसे ज्यादा नुकसान झारखण्ड विकास मोर्चा को हुआ जिसके पांच मजबूत विधायक भाजपा में शामिल हो चुके है। झारखण्ड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस की भी हालत कमोवेश यही है। लगातार अपना जनाधार बढ़ा रही आजसू की भी मुश्किलें कम नही है। उसके कई नेता भाजपा का दामन थाम चुके हैं। राजद और जदयू के पास खोने को बहुत कुछ है नही। मोदी-शाह की जोड़ी से मुकाबले के लिए राज्य में कांग्रेस-झामुमो के नेतृत्व में एक महागंठबंधन की बात भी प्रस्तावित है. कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी बीके हरिप्रसाद ने पिछले महीने झारखंड दौरे के दौरान इस बात को सभी दलों के सामने रखा और सभी गैर भाजपा दलों को इस महगंठबंधन में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया. यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह महगठजोड़ सचमुच आकार ले पाता है और अपने फौरी हितों के किनारे कर सभी गैर भाजपा दल एक साथ हो सकते हैं.फ़िलहाल तो हेमंत सोरेन के नेतृत्व में यूपीए महागठबंधन चुनावी मैदान में उतरने को राजी है लेकिन ये कितना सफल और कारगर होगा कहना मुश्किल है। राजनीतिक प्रयोगशाला के रूप में बदनाम झारखण्ड में सियासी ऊंट किस करवट बैठेगा कोई नही कह सकता। सियासी उठापटक और राजनीतिक तिकड़मों से आजिज जनता कुछ करिश्मा दिखाए इसकी उम्मीद की जा रही है। पिछले 14 वर्षो में बनी 11 सरकारों ने उन्हें निराश ही किया है ऐसे में एक नए जनादेश की ओर झारखण्ड बढ़े इससे इंकार नही किया जा सकता है। आदिवासी चेहरे पर से भी लोगो का भरोसा उठ चूका है और बहुत पहले से ही गैर आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग होने लगी है। हालांकि अबतक किसी भी दल ने ये जोखिम उठाने का साहस नही किया है।अब देखना है की इसबार सियासी गुल क्या खिलाता है। 

Saturday, October 25, 2014

14 saal bad.......

पंकज भूषण पाठक 
---------------------------------------


14 साल बाद भगवान श्री राम वनवास काटकर अपने राज्य लौट चुके और इसी की ख़ुशी में अभी कुछ ही दिन बीते हैं हमें दीपावली मनाये हुए। झारखंड ने भी अपना 14 साल पूरा कर लिया है और एक नए युग की दहलीज पर खड़ा है। चुनावी बिगुल बज चूका है और अगले माह नई सरकार भी बन जाएगी। सबो के अपने अपने दावे जीत के लेकिन ताज किसके सर सजेगा ये कहना फ़िलहाल जल्दबाजी होगी। 
किसी व्यक्ति ,समाज या देश के लिए 14 साल बहुत मायने रखता है। एक युग बदल जाता है समाज का आईना बदल जाता है। भगवान  राम का वनवास हो या फिर उम्रकैद की सजा 14 साल एक लम्बा वक्त होता है बदलाव का। इसे संयोग कहे या फिर 14 का महत्त्व ,खास मायने रहा है इस अंक का। रामायण के मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम को पिता ने 14 वर्ष का वनवास दिया तो महाभारत के नायक पाण्डु पुत्रों को भी 14 साल तक जंगल में भटकना पड़ा। जुए में पराजित होने की सजा उन्होंने 13 साल वनवास और एक साल के अज्ञातवास के रूप में काटी। अब ये रामायण  वनवास से प्रेरित सजा की अवधि थी या महज संयोग लेकिन 14 साल कानून की किताब में भी उम्रकैद की सजा मुक़र्रर कर दी गयी। यही नही किसी आरोपी को सबसे पहले 14 दिनों के लिए ही न्यायिक हिरासत में भेजा जाता है। मतलब की 14  का खास महत्त्व है हमारे इतिहास में। 14 साल की दहलीज पर व्यक्ति किशोरावस्था से युवावस्था में प्रवेश कर रहा होता है.नए सपने उड़ान भरने को तैयार हो रहे होते हैं। यही वो वक्त होता है जब हम शिक्षा की पहली बेरिकेटिंग यानि बोर्ड की परीक्षा दे रहे  होते हैं। इसके बाद ही हमारे सामने उन्मुक्त आकाश होता है सपनो की उड़ान भरने को। आज झारखण्ड भी 14 वर्ष का दहलीज पार कर 15 वें साल में प्रवेश कर रहा है। बिहार से अलग होकर झारखण्ड राज्य का गठन 14 -15 नवंबर की रात हुआ था। राज्य गठन के साथ ही बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी। राज्य के गठन के साथ ही केंद्रीय नेताओं ने राज्य के विधायकों को कमतर आँकने का जो सिलसिला शुरू किया वह बदस्तूर जारी है। हर मोड़ पर झारखंड का फैसला दिल्ली में होता है। राज्य बना तो विधायकों में से नेता चुनने के बजाय सांसद बाबूलाल मरांडी को केंद्रीय मंत्रिमंडल से निकालकर राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया गया। केंद्रीय मंत्रिमंडल से निकालकर मरांडी को राँची पहुँचा देने के पीछे दलील दी गई कि भाजपा आलाकमान ने युवा नेता को संसदीय चुनाव में झारखंड के दिग्गज नेता शिबू सोरेन को पटखनी देने का तोहफा दिया। आदिवासी बहुलता के आधार पर अलग हुए इस राज्य में आदिवासी मुख्यमंत्री को कुर्सी सौप लोगों ने सोचा की उनका सही मायनो में विकास होगा। अपने प्रदेश में उन्हें अपना हक़ अधिकार और सम्मान मिलेगा। बड़ी हसरती नजरों से सूबे की पौने तीन करोड़ आबादी सरकार की और देख रही थी।खनिज सम्पदा से धनी झारखण्ड की  भूखी अधनंगी बेहाल जनता को मानो रामबाण मिल चूका था उन्हें लगा की अब उनकी भूख मिट जाएगी ,सबको रोजगार मिल जाएगा। अबुआ राज में उन्हें सुराज दिखने लगा लेकिन उनके सपने तब चूर चूर हो गए जब मरांडी की सरकार भी सियासी शतरंज की चाल चलने लगी। मरांडी ने डोमेसाइल की ऐसी आग लगायी की पूरा प्रदेश बाहरी -भीतरी की हवा से धु-धु कर जल उठा। दो साल पूरा करते-करते पार्टी विद डिफ्रेंस वाली मरांडी की सरकार दम तोड़ गई। भीतरघात की शिकार बीजेपी ने चेहरा और चाल बदलते हुए अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री बनाया और मरांडी सरकार गिराने वाले विधायकों से समर्थन लिया। युवा मुख्यमंत्री के रुप में अर्जुन मुंडा से भी लोगो ने उम्मीदे पाली और राज्य से सबसे अधिक दिनों तक उन्हें शासन का मौका भी दिया लेकिन सूबे की आदिवासी जनता मुंडा से भी निराश हुई। इसी तरह गुरूजी यानि शिबू सोरेन ,मधु कोड़ा और वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सभी आदिवासी चेहरे जिनपर आदिवासिओं ने पूरा भरोसा किया लेकिन आज भी ये तबका खुद को ठगा महसूस कर रहा है। 


१५ नवम्बर २०००१८ मार्च २००३बाबूलाल मरांडीभाजपा
१८ मार्च २००३२ मार्च २००५अर्जुन मुंडाभाजपा
२ मार्च २००५१२ मार्च २००५शिबू सोरेनझामुमो
१२ मार्च २००५१८ सितंबर २००६अर्जुन मुंडाभाजपा
१८ सितंबर २००६२८ अगस्त २००८मधु कोडानिर्दलीय
२८ अगस्त २००८18 जनवरी २००९शिबू सोरेनझामुमो
19 जनवरी २००९29 दिसम्बर २००९राष्ट्रपति शासन
30 दिसम्बर २००९31 मई २०१०शिबू सोरेनझामुमो
1 जून २०१०१० सितम्बर २०१०राष्ट्रपति शासन
11 सितम्बर 201018 जनवरी 2013अर्जुन मुंडाभारतीय जनता पार्टी
18 जनवरी 201313 जुलाई 2013राष्ट्रपति शासन
13 जुलाई 2013वर्तमानहेमंत सोरेनझारखंड मुक्ति मोर्च
सियासी प्रयोगशाला का केंद्र रहा है झारखण्ड

सन 2000 में राज्‍य का गठन होने के बाद भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी इस राज्‍य के पहले सीएम बने. नवम्‍बर महीने में उन्‍होंने झारखंड की सत्‍ता संभाली. मार्च, 2003 में इस राज्‍य ने पहली राजनीतिक अस्थिरता का सामना किया. बाबूलाल मरांडी से नाराज तत्‍कालीन समता पार्टी एवं वनांचल कांग्रेस ने सरकार से समर्थन वापस लेकर उनके हाथ से कुर्सी खींच ली. पर राज्‍य का प्रभार देख रहे राजनाथ सिंह ने फिर जोड़-तोड़ करके मरांडी को हटाकर अर्जुन मुंडा के नेतृत्‍व में फिर से भाजपा की सरकार का गठन करा दिया. उठा पटक और धमकी के बीच किसी तरह से अर्जुन मुंडा ने कार्यकाल पूरा किया. वर्ष 2005 में हुए दूसरे विधानसभा के चुनावों में त्रिशंकु विधानसभा का गठन होने के बाद पहली बार शिबू सोरेन राज्‍य के सीमए बने. पर वे नौ दिन से ज्‍यादा नहीं टिक पाए. बहुमत साबित नहीं होने के चलते उन्‍हें इस्‍तीफा देना पड़ा. शिबू के इस्‍तीफा देने के बाद अर्जुन मुंडा के नेतृत्‍व में एक बार फिर भाजपा की सरकार का गठन हुआ. लेकिन कांग्रेस ने निर्दलीय मधु कोड़ा को सरकार से अलग करके सितम्‍बर 2006 में अर्जुन मुंडा की सरकार को गिरा दिया. इसके बाद किसी भी राज्‍य में पहली बार निर्दलीय विधायक के नेतृत्‍व में सरकार का गठन हुआ. मधु कोड़ा राज्‍य के सीएम बने. मात्र अपने 23 माह के कार्यकाल में कोड़ा ने जो गुल खिलाए वो इतिहास बन चुका है. अरबों रुपये के भ्रष्‍टाचार के आरोप में झारखंड का यह पूर्व सीएम जेल की हवा खा चूका  है. कोड़ा की सरकार के गिर जाने के बाद अगस्‍त, 2008 में शिबू सोरेन दूसरी बार राज्‍य के सीएम बने. लेकिन वे इस बार भी छह महीने से ज्‍यादा समय तक सीएम की कुर्सी पर काबिज नहीं रह पाए. विधान सभा चुनाव राजा पीटर से हारने की वजह से उन्‍हें सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी. उन्‍होंने जनवरी, 2009 में इस्‍तीफा दे दिया.इसके बाद पहली बार राज्‍य में राष्‍ट्रपति शासन लगा. लगभग एक सालों तक राज्‍य में राष्‍ट्रपति शासन लगा रहा. 2009 अंतिम महीनों में हुए विधानसभा चुनाव में राज्‍य में फिर से त्रिशंकु विधान सभा का गठन हुआ. 23 दिसम्‍बर को विधानसभा के गठन की अधिसूचना जारी होने के बाद शिबू सोरेन ने तीसरी बार भाजपा के सहयोग से राज्‍य की सत्‍ता संभाली. राज्‍य में बीजेपी के सहयोग से सरकार चला रहे गुरुजी ने अप्रैल 2010 में लोकसभा में केंद्रीय बजट पर भाजपा के कटौती प्रस्‍ताव के विरोध में यूपीए का समर्थन कर दिया. नाराज बीजेपी  ने मई, 2010 में झामुमो सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया, जिससे सरकार गिर गई. किसी भी दल के पास सरकार बनाने लायक संख्‍या बल न होने के चलते राज्‍य में दूसरी बार राष्‍ट्रपति शासन लगा. लगभग पांच महीने तक राज्‍य में राष्‍ट्रपति शासन लागू रहने के बाद झामुमो ने बिना शर्त भाजपा को समर्थन देने की घोषणा की, जिसके बाद सितम्‍बर, 2010 में अर्जुन मुंडा के नेतृत्‍व में भाजपा सरकार का गठन हुआ. मुंडा तीसरी बार राज्‍य के मुख्‍यमंत्री बने. लेकिन यह गठबंधन भी अधिक दिनों तक नही चल सका। स्थानीय नीति समेत कई सवालों के चक्रव्यूह में अर्जुन मात खा गए और जनवरी 2013 में  झामुमो ने मुंडा सरकार से समर्थन वापस लेकर राज्‍य में ग्‍यारहवीं सरकार के गठन का रास्‍ता तैयार कर दिया.18 जनवरी 2013 को अर्जुन मुंडा ने इस्तीफा सौपते हुए विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर दी। लेकिन केंद्र सरकार ने विधानसभा भंग करने की वजाय सूबे में तीसरी बार राष्ट्रपति शासन की मंजूरी दे दी। 6 माह बीतते ही राज्य में सियासी खिचड़ी पकने लगी और झामुमो -कांग्रेस -राजद की तिकड़ी ने नई सरकार बना ली। इसबार ताज शिबू सोरेन के बेटे हेमंत सोरेन के सर सजा और 13 जुलाई 2013 को उन्होंने युवा मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। सियासी तिकड़म और अस्थिरता के हिचकोले खाती हेमंत सरकार ने एक साल पूरा कर लिया। हालाँकि इस सरकार में अंदर -बाहर खूब घमासान मचता रहा है। सहयोगी दलों के ही  मंत्री नही वल्कि सत्ताधारी नेताओं ने भी मुख्यमंत्री के कामकाज पर  सवाल खड़े करना शुरू कर दिया। नतीजतन कांग्रेस कोटे के मंत्री चंद्रशेखर दुबे उर्फ़ ददई दुबे को मंत्री पद से बर्खास्त किया गया।  बोलबच्चन के शिकार झामुमो कोटे के मंत्री साइमन मरांडी भी हुए। इसी बीच लोकसभा चुनाव के दौरान सीटों के बटवारे को लेकर भी खूब धींगामुश्ती हुई। झामुमो -कांग्रेस के कई विधायक दूसरे दलों  में शामिल हो गए लेकिन इससे सरकार की सेहत पर कोई असर नही पड़ा। नक्सलिओ के साथ साठगांठ के आरोप में कोंग्रेस कोटे के एक और मंत्री योगेन्द्र साव भी बर्खास्त कर दिए गए। उनकी जगह बन्ना गुप्ता को जगह मिली। खैर घोटाले और घपलो के बदनाम झारखण्ड में ऐसी घटनाओं के लोग आदी हो चुके हैं। राजनीतिक अस्थिरता और सियासी तिकड़मों के बीच न तो यहाँ के आदिवासिओं को उनका अधिकार मिल सका है और ना ही सूबे का सही मायनों में विकास हो सका है। गठबंधन की सरकारों ने अपना अधिकांश समय कुर्सी की खींचतान में ही बिता दिया जिसका नतीजा ये हुआ की खनिज सम्पदाओ से परिपूर्ण झारखण्ड विकास के आखरी पायदान पर पहुंच गया है। 
अब जबकि झारखण्ड में चुनावी रणभेरी फूकीं जा चुकी है तो एक उम्मीद की जा सकती है की भगवान राम और पांडवो की तरह राज्य का भी सियासी वनवास ख़त्म हो। केंद्र में बनी बहुमत की सरकार के बाद अब इस राज्य में भी पूर्ण बहुमत की मजबूत सरकार की जरुरत महसूस हो रही है।साथ ही एक ऐसे नेतृत्व की और सभी टकटकी निगाहों से देख रहे है जो केवल अपनी कुर्सी नही राज्य के विकास की चिंता करे।

Friday, October 24, 2014

diwali



स्वच्छता अभियान में हो रही साफ सफाई।
थोड़ी पर्यावरण की भी चिंता कर लो भाई।
कुछ ही दिनों में आनेवाली है दिवाली
पटाखों से फैलेगी चहुँओर धुवाँ काली।
धूम धडाको से मचेगा शोर ।
फैलेगा वायु प्रदूषण हरओर।
क्या नही करना है पर्यावरण का ध्यान
तो फिर आज ही मन में लो यह ठान।
पटाखे को करो बाय बाय।
चायनीज लाइट को कहो गुडनाईट ।
मिटटी के तुम दीप जलाओ
एक गरीब के घर चूल्हा जलाओ।
घर के बने पुवे पकवान खाओ
मिलावटी खोवे से खुद को बचाओ।

निरीह निर्दोष न हो शहीद


नाम चाहे जो रख लो शाहरुख़ या सलमान
हिन्दू के घर जाओ या ले जाये मुसलमान
तेरी तो नियति में लिखा हैै हो जाना कुर्बान
कहीं मनेगा दशहरा होगी कहीं बकरीद
बकरे की अम्मा कबतक खैर मनाएगी
आज नही तो कल गोद सुनी हो जाएगी
नवरात्र -बकरीद में तू सबका है मुरीद
राम से बचा तो रहीम के घर होगा शहीद
नही रहमत तेरा न कोई तेरा है भगवान
त्यौहार की हो तुम बलि मन में लो ठान
नही दया किसी कोे तुम हो भले नादान
अपने स्वाद को लोग लेते तुम्हारी जान
पर है तुम्हे भी जीने का अधिकार
नही जाएगी तुम्हारी कुर्बानी बेकार
क्यों हो बलि किया नही जब कोई नुकसान
ऐश करते आतंकी बनके सरकारी मेहमान
मजे उड़ाते भ्रस्टाचारी लुटके सबका अरमान
नेता-अफसर-कर्मचारी सब लुट के अधिकारी
पड़े बलि इनसबकी खत्म हों सारे बलात्कारी
न हो अन्याय कहीं निरीह निर्दोष न हो शहीद
सफल होगा नवरात्र तभी मनेगी तभी बकरीद।
Unlike

facebook


उन्हें भी फेसबुक से हो गयी दोस्ती।
स्टेट्स चैट व्हाट्स इन योर माइंड में
अब उन्होंने सारा दिन दिमाग खपाया है ।
उम्र के इस पड़ाव में भी देखो
फ्रेंड्स और लाइक खूब बनाया है।
जाने कहा से ये फेसबुक आया है।
कम्प्यूटर बना कबाड़ी
टैब-लैप भी बना अनाड़ी
अब मोबाईल स्मार्ट बन आया है।
अब हर हाथ में नेट का साया है।
तभी तो फेसबुक इतना छाया है।
फेसबुक पर हो रही दोस्ती
फेसबुक पर ही प्यार निभाया है।
बात अलग है की आई तब अकल
जब फेसबुक प्यार में धोखा खाया है।
ठीक है की यहाँ मिले नये दोस्त मगर
फेस्बुकिया में लोगो ने खुद को भुलाया है
लगती थी चौपाल कभी
मिलते थे जहाँ सभी
अब फोन से ही होती बाते
नेट पे गुजर जाती है रातें।
अब कहाँ की बाते ये तो आलम आया है
फेसबुक की दोस्ती में अपनों को रुलाया है।
पंकज भूषण पाठक"प्रियम"

हम पत्रकार हैं


जहाँ पे समझते अपना अधिकार हैं।
ना बन्दूक न गोली,बारूद न गोला
ताकत हमारी बोली,खद्दर का झोला
कलम को समझते अपना हथियार हैं।
तभी तो लोग कहते हमे पत्रकार है ।
दुनिया बन जाती बैरी मगर
हमे तो रहता सभी से प्यार है
लोग कहते छोडो ये धंधा
कुछ नही यहाँ सब बेकार है।
कैसे छोड़ दूँ इसको जिसे
फांकाकशी में भी किया बहुत प्यार है।
रगों में बह रहा शब्दों का कतरा
मंजूर है सांसो का पहरा
खानाबदोशी भी स्वीकार है।
क्युकी अब जीवन एक अख़बार है।
औरों की हंसी में ढूढ़ते हम ख़ुशी
मौत मुकद्दर मुफलिसी के हमनशीं
अन्याय से लड़ना अपना अधिकार है
हर ताल कदमताल हम सरकार हैं
जग के पहरुआ सजग हम पत्रकार हैं।
---------------पंकज भूषण पाठक "प्रियम "