Thursday, December 9, 2010

महामहिम आपके स्वागत में ..


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--पंकज भूषण पाठक"प्रियम"

देश की प्रथम महिला महामहिम राट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल जी आपके रांची आगमन पर हम सभी खुद को काफी गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। राजधानी रांची के लिए ये काफी सुनहरा अवसर है जब आपके चरण इस धरती पर पड़े .आपके स्वागत में पूरा प्रशासनिक अमला दिनरात लगा हुआ है ,कोई चुक न हो इसके लिए लगातार मोकड्रिल रिहर्सल किया जा रहा है ये अलग बात है की इसके लिए आम नागरिको को भरी परेशानी झेलनी पड़ रही है .रिहर्सल के लिए एअरपोर्ट से लेकर मोरहाबादी मैदान तक कई बार घंटो ट्रैफिक रोक दी जा रही है और ये पिछले तिन दिनों से लगातार हो रहा है। हालाँकि राजधानी बनाने के बाद शहर के लोग वीआईपी मूवमेंट के आदि हो चुके हैं लेकिन आपके स्वागत में अभूतपूर्व सतर्कता बरती जा रही है। जिसका असर आम लोगो की दिनचर्या पर पड़ रहा है .आपको ये बताते हुए थोडा दुःख तो जरुर हो रहा है लेकिन क्या करू चौथे स्तम्भ का फर्ज निभाना भी जरुरी है आपके आगमन को लेकर एअरपोर्ट से लेकर मोरहाबादी मैदान तक प्रशासन ने सैकड़ो पेड़ -पैधो की बलि ले ली। सडको के किनारे छाया दे रहे वर्षो पुराने पेड़ों के साथ-साथ डीवाईदरस में खूबसुरती और सुगंध बिखेरते मासूम पैधो को भी काट दिया गया। इनका कसूर सिर्फ इतना है की ये आपके आवागमन के मार्ग पर खड़े थे। हालाँकि इनका आपसे कोई दुश्मनी नही था लेकिन प्रशासन की नजर में आपकी सुरक्षा में ये बाधक बन रहे थे। बख्तरबंद गाड़ी में आपकी नजर भले ही इन जख्मी और मृत पौधों पर नही पड़ेगी लेकिन ये अपको रोते जरुर मिल जाएँगे। आप तो यहाँ से लौट जाएंगी लेकिन इनके जख्मो को भरने में काफी वक्त लगेगा। लोगो के विरोध पर प्रशासन ने आनन्-फानन में घायल पौधों के जख्म को भरने की नाकाम कोशिश किया और आपकी राह में हरियाली बिछाने के लिए शो-प्लांट रोप दिए गये... बहरहाल हम सभी भगवान् बिरसा की धरती पर आपका तहे दिल से स्वागत करते हैं। --


Tuesday, December 7, 2010

शीला की जवानी...से ...मुन्नी बदनाम 





पंकज भूषण पाठक "प्रियम"



पहले तो मुन्नी बदनाम हुई अब शीला की जवानी भी सताने लगी है और इन दोनों ने लोगो का चैन छीन लिया हैं .आजकल दो गाने काफी चर्चित है मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिए ... और शीला...शीला की जवानी... .हैं तो दोनों आइटम सोंग लेकिन उनकी चर्चा खूब हो रही है .क्या बड़े क्या बच्चे हर किसी की जुबान पर ये गाने चढ़े हुए हैं। मै उस वक्त हैरान रह गया जब एक छोटी सी बच्ची को अपनी तोतली आवाज में मुन्नी बदनाम हुई... और शीला की जवानी ..के बोल दुहरा रही थी .शायद ये बुद्धू बक्से यानि टेलीविजन का कमाल हैं जहाँ हर चैनल पर इन गानों की धमाल मची हुई हैं। घर से लेकर बाजार तक इन शीला की जवानी की चर्चा है जिससे तमाम मुन्निया बदनाम हो चुकी है। एक गाना आया था पप्पू कांट डांस साला ...और पप्पू पास हो गया पर पप्पू नाम के लड़के काफी परेशां रहे .कुछ यही हाल इन दिनों मुन्नी और शीला के साथ हो रहा है। मोहल्ले से लेकर स्कुल- कोलेज तक में उनका चलना दूभर हो गया है .सड़क छाप मजनू हो या फिर सहपाठी हर कोई इस इन गानों पर उनकी चुटकी लेने में लगा है। अब इनका क्या कसूर फिल्मवालो ने तो उनके नाम को बदनाम कर दिया .खैर गाने हैं गानों का क्या ...आइटम सोंग है तो उनमे मिर्च मसाला होना लाजमी है। गाने के बोल जो हैं सो हैं लेकिन जरा उसके फिल्मांकन को देखे तो जवानी और बदनामी का पूरा नजारा दिख जाएगा .जो दुसरे आइटम गानों की तरह परिवार के साथ बैठकर देखना तो कतई संभव नही है। लेकिन ये फिल्मवाले भी क्या करे ,इनकी भी बड़ी मज़बूरी है फिल्म को चलाने के लिए ऐसे मसाले तो डालने ही पड़ेंगे .क्युकी फिल्म इंडस्ट्री की हालत इनदिनों वैसे भी कुछ अच्छी नही है और आइटम सोंग तो फिल्मो के चटकपण के लिए शुरू से बेहतरीन साधन रहा हैं। पहले तो आइटम सोंग के लिए अलग से आइटम गर्ल हुआ करती थी जो सेक्सी अदाओ से गाने को रंगीन करती थी लेकिन आज के दौर में बड़ी और सुपरस्टार हीरोइने भी आइटम सोंग करने में अपनी शान समझने लगी है । अब कैटरिना को ही देख ले ..शीला की जवानी में उन्होंने माशा -अल्लाह ..क्या जलवा दिखाया है । इन गानों का हमारे समाज और नई पीढ़ी में क्या असर हो रहा है ये शायद बताने की जरुरत नही है।

Monday, December 6, 2010

प्रश्न नए

सोचता हूँ कभी भगवान ने
पेड़-पौधे ,जंतु-इन्सान तक
को बनाया सबमे रंग रूप जान डाला
पर इनमे भेदभाव क्यों जगाया।
जाती धर्म संप्रदाय रंग

का भेद क्या भगवान् ने ही बनाया

सोचता हु फिर नहीं उसकी तो

सब संतान है वह कैसे भेद करेगा।

फिर किसने यह रंग जमाया

हम जिसे चाहते है ,जिसे पूजते है

अपना दर्द,अपनी जान मानते है,

पर उसे ही अपना नही पाते हैं
जाती धर्म की बेडियो में
बंधा खुद को लाचार पाते है

एक राम एक रहीम कों
अपना भगवान मानते हैं
उसकी झूठी प्रतिष्ठा में

उसके ही संतान कों मारते हैं
कितना अच्छा होता पुरे जहाँ में
एक जाती धर्म .एक समाज
एक भगवान् एक खुदा होता
न कोई मंदिर ,न मस्जिद न चर्च न गुरुद्वारा

सब कुछ तो सबके दिल में है
सब जानते हैं फिर भी जाने क्यों

नही मानते हैं
हर बार नये प्रश्न उठाते हैं

--पंकज भूषण पाठक" प्रियम"

Sunday, December 5, 2010

हाथ बढाओ यारो



हाथ बढाओ यारो

ता उम्र पड़ी है भागदौड़
फुर्सत तो क्षणभर की निकालो यारो
दिल मिले न मिले
तनिक अपना हाथ तो बढाओ यारो ।
नहीं मकसद कोई हंगामे का
हालात बदलने की एक कवायद है यारो ।
जो न मिले दिल अपना
फिर चाहे जो खुलके कह डालो यारो।
न रंग जाये एक रंग में तो कहना
तनिक प्रेम की पिचकारी तो मरो यारो।
न द्वेष धर्म की .न भेद जात का
रंग मोहब्बत के रंग डालो यारो ।
खुली उंगलिया मुट्ठी बन जाएगी
आवाज एक दिल से निकालो तो यारो ।
शबनम बन जाएगी सागर की लहरे
होली के हुडदांग me ईद की राग निकालो यारो ।
मोहब्बत की तासीर में टूट जाएँगे गिले -शिकवे
दिल की हर बात मुझे कह डालो यारो ।
वादा है प्रियम का आपसे
सूरत ही नही सीरत भी बदलेंगे
प्रेम से खुद को गले से लगाओ तो यारो ।
-- पंकज भूषण पाठक "प्रियम"






जिंदगी शाम सी






ग़जल
जिंदगी कुछ धुंधली शाम सी लगती है
भीड़ में भी दुनिया गुमनाम सी लगती है ।
यूँ तो कभी पीता नही ,पर लडखडाता हु
जब गम -ऐ -इश्क भी जामसी लगती है ।
भीड़ में भी तनहा रहने की कसम खा ली है
ये दुनिया भी कुछ अनजान सी लगती है ।
सपने आते हैं अक्सर टूट जाते हैं
फुल खिलते है और बिखर जाते हैं ।
फैसले कर सजा भी खुद दे लेते हैं
नाम की ये जहाँ भी बदनाम सी लगती है ।
जिंदगी भी रुसवा होके कभी शाम सी लगती है
तन्हाई में भी कभी -कभी
रुसवाई की निदान सी लगती है ।
-- पंकज भूषण पाठक "प्रियम"